छत्तीसगढ़ की संस्कृति में मित्रता को संस्कारित करने और साक्षांकित करने के लिए एक छोटे से पूजा का आयोजन भी किया जाता है। उस दिन गोबर से बनाए हुए गौरी-गणपति की पूजा की जाती है और उसके बाद प्रतीकात्मक रूप से जिस वस्तु की अदला बदली करके दो व्यक्ति उसे ग्रहण करते हैं वो एक दूसरे के मित्र बन जाते हैं। छत्तीसगढ़ की मितानी धर्म जाति उम्र के बंधन से परे खून के रिश्ते से भी प्रगाढ़ रिश्ता निर्मित होता है जिसे जन्म-जन्मांतर तक निभाया जाता है। भोजली में भोजली का आदन प्रदान होता है तो गंगाजल में गंगाजल का। इसी तरह अन्य वस्तुओं के आदान प्रदान ग्रहण से मितानी बद ली जाती है।
जागरण के राजेश शुक्ला बताते हैं कि 'अटलांटा यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जोएस फ्रेंकलगन बस्तर सहित छत्तीसगढ़ के कई दूसरे हिस्सों में रहकर इस परंपरा पर शोध कर रही हैं। वह अमेरिका में भी हर किसी को मितान परंपरा को अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं। 54 वर्षीय जोएस की बेटी भी फ्रेंड्स नहीं बल्कि मितानित बनाती हैं।'प्राय: यह देखने में आता है कि मित्रता को सहीं ढ़ग से परिभाषित ना करते हुए कतिपय संकुचित विचार वाले लोग इसे स्त्री-पुरूष प्रेम का पर्याय मान लेते हैं। यद्धपि मित्रता में प्रेम समाहित रहता है किन्तु यह विपरीत लिंगी के प्रति उमड़ने वाले प्रेम से पृथक है। यह विशुद्ध मित्रता दिवस है, प्रेम दिवस नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मित्रता के इस पवित्र रिश्ते को सम्मान देने एवं इसकी सदभावना को प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस (World Friendship Day) या फ्रैंडशिप डे प्रत्येक वर्ष अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है। यह सर्वप्रथम सन 1958 में डॉ रामन आर्टिमियो ब्रैको के आह्वान पर पराग्वे में मनाया गया था। इस दिन द वर्ल्ड फ्रैंडशिप क्रूसेड की स्थापना की गई थी। इस क्रूसेड में जाति, रंग या धर्म के सीमाओं से परे सभी मनुष्यों के बीच मित्रता को बढ़ावा देती है। पराग्वे में प्रति वर्ष 30 जुलाई को मैत्री दिवस के रूप में मनाया जाता है।